जब घर में एक बेटी पैदा होती है तो माता-पिता तबसे उसके कन्यादान के लिए मानसिक रूप से तैयार होने लगते हैं । पिता आर्थिक रूप से सोचते हैं तो मां अपने प्यार से सीची हुई बेटी के लिए वे सारे सुख बटोरने की कोशिश करती है जो उसे लगता है कि शायद यह देने से वह सुखी रहे, लेकिन जब मैं पीछे मुड़कर देखती हूं तो मुझे अपने माता-पिता पर गर्व होता है । वह संस्कार ,वह प्यार , वह सभ्यता और मुझे मेरे इश्ट के साथ विदा किया । माता-पिता का दिया हुआ यह दहेज मै समा नहीं पा रही। जितना मैंने इनका इस्तेमाल किया। वह उतना ही बढ़ता गया। आज मैं अपने घर में बैठी जिस तरफ आंख उठा कर देखती हूं तो मुझे हर कुछ उनका दिया ही लगता है ।सबसे पहले मंदिर से चले तो मंदिर में उनके ही दिये इष्ट विराजे हैं फिर बच्चों को देखें तो उनमें भी वही संस्कार आ गए तो उनमे भी उनका ही रूप दिखता है फिर पति पर आए तो वह भी इस बेल में जुड़ गए उनके हृदय का छोटा सा दिया भी अब तेज ले चुका है। इन सब से मिलकर घर में एक ऐसी वाइब्रेशन उत्पन्न होती है जो हमें हर परिस्थिति से लड़ने की शक्ति देती है । मुझे अपने माता-पिता पर गर्व है ।
एक माता पिता अपने बच्चों के लिए जो चाहे, वह बच्चों के जीवन में परिलक्षित होने लगता है इसलिए अपने बच्चों के लिए क्षणिक सुख ना सोचे उन्हें जीवन की लंबी लड़ाई के लिए तैयार करें । अपनी बेटी को उन सुखों के साथ विदा करें कि वह एक और वृक्ष का निर्माण कर सकें।
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